November 23, 2024

ख़बरे टीवी – ऐपवा ने राष्ट्रीय स्तर पर उपरोक्त मांग पर धरना का आह्वान किया है, यह धरना गांव – मुहल्ले में शारीरिक दूरी का पालन करते हुए आयोजित किया जाएगा

मुरलीधर प्रसाद केसरी, इसलामपुर ( ख़बरे टीवी – 9523505786 ) – स्वयं सहायता समूह का आंदोलन संगठित करें.

1.स्वयं सहायता समूह में शामिल महिलाओं का कर्ज माफ करो !
2.माइक्रो फायनांस कम्पनियों द्वारा दिए गए कर्जों का भुगतान सरकार को करना होगा !
3. हर समूह को उसकी क्षमता के अनुसार या कलस्टर बनाकर रोजगार का साधन उपलब्ध कराओ !
4. एस०एच०जी०(स्वयं सहायता समूह – सेल्फ हेल्प ग्रुप) के उत्पादों की खरीद सुनिश्चित करो !
5. स्वयं सहायता समूह को ब्याज रहित ऋण दो !
6. जीविका कार्यकर्ताओं को न्यूनतम 15 हजार मासिक मानदेय दो !

राष्ट्रव्यापी धरना
29 मई 2020
स्वयं सहायता समूह संघर्ष समिति (ऐपवा)

ऐपवा ने राष्ट्रीय स्तर पर उपरोक्त मांग पर धरना का आह्वान किया है। यह धरना गांव – मुहल्ले में शारीरिक दूरी का पालन करते हुए आयोजित किया जाएगा।

केन्द्र सरकार के 20 लाख के पैकेज की घोषणा में स्वयं सहायता समूह के लिए कुछ नहीं है। सरकार की घोषणा में बस इतना है कि एक साल तक उन्हें लोन की किस्त जमा करने से छूट मिलेगी। कर्ज माफ नहीं होगा, बल्कि उन्हें कर्ज जमा करने के समय में छूट दी गई है। हम सभी जानते हैं कि अन्य तमाम श्रमिक वर्ग की तरह ही लॉकडाउन के कारण महिलाओं की आर्थिक स्थिति भी बुरी तरह बिगड़ गई है। एक साल के बाद भी लोन चुकता करना उनके लिए संभव नहीं होगा। दूसरी तरफ स्वयं सहायता समूह चलाने वाली प्राइवेट कम्पनियां अभी भी लोन का किस्त जबरन वसूल रही हैं। सरकार बड़े पूंजीपतियों के कर्जे लगातार माफ करती जा रही है जबकि जरूरत है कि उनसे कर्ज वसूल किया जाए और गरीब महिलाओं को राहत दी जाए।

बिहार सरकार ने हरेक परिवार को 4 मास्क देने का फैसला किया है। इसके निर्माण का काम स्वयं सहायता समूह को देने की घोषणा की गई थी। लेकिन वास्तविकता यह है कि सभी समूहों को यह काम दिया ही नहीं गया। अगर कहीं दिया भी गया तो उनसे मास्क खरीदा नहीं जा रहा है। अगर इस फैसले को गंभीरता से लागू किया जाता तो समूह को एक बड़ी आर्थिक सहायता हो सकती थी। इसे लागू करने की बजाय सिर्फ रोजगार की बड़ी – बड़ी बातें की जा रही हैं।

हमने विगत जांच – पड़ताल में पाया था कि ग्रामीण महिलाओं की संरचना में भी बड़ा बदलाव आया है। पहले खेत में काम के अलावा उनके पास अन्य काम न के बराबर थे। लेकिन अब वे भी विभिन्न किस्म के रोजगार से जुड़ गई हैं। अभी तक हमने सिर्फ रसोइया और आशा कर्मियों को संगठित किया है और अन्य कई तबकों को संगठित करने का प्रयास बहुत ही कमजोर है।

बिहार में 1 करोड़ से ज्यादा महिलाएं स्वयं सहायता समूह में संगठित हैं। इन ग्रामीण महिलाओं को संगठित करने की कई बार चर्चा हुई है, लेकिन अभी तक इस दिशा में हम कोई ठोस पहल नहीं कर सके हैं। लॉक डाउन से परेशानी के इस दौर में उनकी मांग उठाकर हम उनके बीच अपनी जगह बना सकते हैं। इन समूहों में हमारे पार्टी परिवारों और समर्थक आधार की महिलाएं बड़ी संख्या में संगठित हैं। इसलिए अगर हम कोशिश करें तो गांव – गांव में धरना का कार्यक्रम आयोजित किया जा सकता है। इस प्रक्रिया में न केवल इनका संगठन खड़ा हो सकता है बल्कि इनके बीच से महिला कार्यकर्ताओं का विकास भी हो सकता है।

इस धरना से हम इन्हें संगठित करने की शुरुआत कर सकते हैं और इससे मिले अनुभवों के आधार पर आगे स्वयं सहायता समूह को संगठित – आंदोलित करने की विस्तृत योजना बनाई जा सकती है।

अभी मानसा, पंजाब में हमारी पार्टी के नेतृत्व में स्वयं सहायता समूह की महिलाओं का कर्ज माफी से सम्बन्धित बड़ा प्रदर्शन हुआ है। लॉक डाउन के इस दौर में ही स्वयं सहायता समूह की मांग उठा देना ठीक रहेगा। 31मई के बाद की स्थिति क्या होगी, अभी तक साफ नहीं है। हमारे लिए इस तबके को गोलबंद करने का यह पहला मौका है। इसलिए थोड़ी दिक्कत हो सकती है। पार्टी जिला सचिव को चाहिए कि ऐपवा के साथियों के साथ मिलकर कार्यक्रम को सफल करने का प्रयास करें।

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