ख़बरे टीवी – सन् 1199 में तुर्की शासक बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय में आग लगवा दी थी, कहा जाता है कि विश्वविद्यालय में इतनी पुस्तकें थीं कि पूरे तीन महीने तक यहाँ पुस्तकालय में आग धधकती रही, नालंदा विश्वविद्यालय के पुस्तकालय का हो पूर्णा निर्माण – सांसद कौशलेंद्र.
सन् 1199 में तुर्की शासक बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय में आग लगवा दी थी, कहा जाता है कि विश्वविद्यालय में इतनी पुस्तकें थीं कि पूरे तीन महीने तक यहाँ पुस्तकालय में आग धधकती रही, नालंदा विश्वविद्यालय के पुस्तकालय का हो पूर्णा निर्माण – सांसद कौशलेंद्र.
( ख़बरे टीवी – 9334598481, 9523505786 ) – नालंदा के सांसद कौशलेन्द्र कुमार ने लोकसभा में नियम 377 के तहत मामला उठाते हुए कहा कि नालंदा अन्तर्गत प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के पुस्तकालय के पुनर्निमाण की अति आवश्यकता है। आप जानते हैं कि प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय पूरे विश्व में ज्ञान का केन्द्र था। नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त वंश के शासक कुमार गुप्त प्रथम ने 450-470 ई0 के बीच किया था। यह विश्वविद्यालय स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना था। यहाँ पर करीब 10 हजार से अधिक छात्रों के पठन-पाठन की व्यवस्था थी और करीब 2 हजार से अधिक अध्यापकों की संख्या थी।ये सभी विद्यार्थी अधिकतर विदेशी थे, जो मुख्यतः कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इण्डोनेशिया, फारस, तुर्की आदि देशो के होते थे। उनके लिए यहाँ विशालकाय पुस्तकालय भवन भी था। कहा जाता है कि इस पुस्तकालय में करीब 3 लाख से अधिक ज्ञान की महत्वपूर्ण पुस्तकें थी। नालंदा उस समय भारतवर्ष में उच्च शिक्षा का महत्वपूर्ण और विख्यात केन्द्र था।
महायान बौद्धधर्म के इस शिक्षा-केन्द्र में हीनयान बौद्धधर्म के साथ ही अन्य धर्मों तथा अनेक देशों के छात्र पढ़ते थे। विश्वविद्यालय में आचार्य छात्रों को मौखिक व्याख्यान द्वारा शिक्षा देते थे। व्याकरण, दर्शन, शल्य विद्या, ज्योतिष, योग शास्त्र तथा चिकित्सा शास्त्र भी पाठ्यक्रम के अन्तर्गत था। विद्वानों का मत है कि यहाँ धातु की मूर्तियाँ बनाने के विज्ञान का भी अध्ययन होता था। यहाँ खगोल शात्र अध्ययन के लिए एक विशेष विभाग था। इस विश्व विख्यात विश्वविद्यालय में स्थित पुस्तकालय नौ तल का था, जो हजारों विद्यार्थियों और आचार्यों के अध्ययन का केन्द्र था। इस बौद्ध विश्वविद्यालय के अवशेष के खोज का श्रेय अलेक्जेंडर कनिंघम को जाता है।
सांसद श्री कुमार ने भी कहा कि सन् 1199 में तुर्की शासक बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय में आग लगवा दी थी। कहा जाता है कि विश्वविद्यालय में इतनी पुस्तकें थीं कि पूरे तीन महीने तक यहाँ पुस्तकालय में आग धधकती रही। उसने प्राचीन भारत की उपलब्धि को नष्ट करने के लिए यह सब क्रूर कार्य किया।