नालंदा के जदयू सांसद कौशलेंद्र कुमार ने लोकसभा में फिर उठाया बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग
नालंदा के जदयू सांसद कौशलेंद्र कुमार ने लोकसभा में नियम 377 के तहत मामला उठाते हुए कहा कि बिहार का विकास केंद्र सरकार के ऐतिहासिक रूप से पक्षपात पूर्ण नीतियों एवं विभिन्न सामाजिक और आर्थिक कारणों के चलते बाधित होता आ रहा है| बिहार के बंटवारे के बाद प्रमुख उद्योगों और खदानों के झारखंड में चले जाने के कारण बिहार की समस्या और गंभीर हुई है |आजादी के पहले बिहार में लागू प्रतिगामी स्थाई बंदोबस्ती ने राज में सामाजिक एवं संरचनात्मक विकास को बाधित किया तथा आजादी के बाद मालवाहक भाड़ा सामान्य करण नीति के कारण तत्कालिक बिहार को कच्चे माल की प्रचुर उपलब्धता एवं लागत लाभ का फायदा नहीं मिल सका, इस अवधि में जबकि दक्षिण एवं पश्चिम भारत के तटीय राज्य में औद्योगिक विकास हुआ मगर बिहार पिछड़ेपन का शिकार रहा इसके अतिरिक्त नेपाल एवं अन्य राज्यों से प्रवाहित होने वाली नदियों से प्रत्येक वर्ष आने वाली बाढ़ के कारण भौतिक एवं सामाजिक आधारभूत संरचना में हुए नुकसान की भरपाई हेतु बिहार को अतिरिक्त वित्तीय भार उठाना पड़ता है| ऐसे कारण जो बिहार के नियंत्रण में नहीं है, की वजह से राज्य को प्रत्येक वर्ष बाढ़ की पीड़ा झेलनी पड़ती है, बाढ़ राहत पूर्ण आवास एवं पुनर्निर्माण कार्यों पर काफी राशि खर्च होती है ,श्री कुमार ने यह भी कहा कि 11 बे वित्त आयोग में बिहार का हिस्सा 11.589 % था जो 12 बे वित्त आयोग में घटकर 11.028 % 13 बे वित्त आयोग में 10.917% और 14 वे वित्त आयोग में 9. 665% हो गया केंद्र सरकार 14वें वित्त आयोग की अनुशंसा को दिखाकर राज के हित की बात करती है, किंतु 14 बे वित्त आयोग की अनुशंसा के तहत राज्यों के अंतरण की जो 32% से बढ़ाकर 42% किया गया है वह मात्र एक संरचनात्मक परिवर्तन है, एक और कर अंतरनो मैं वृद्धि के कारण राज्यों की जो हिस्सेदारी बढ़ी है, वही दूसरी और केंद्र सरकार द्वारा केंद्रीय योजनाओं एवं केंद्र प्रायोजित योजनाओं में कटौती का कारण काफी हद तक समायोजित हो गई फिर बिहार जैसे पिछड़े राज्यों का भला कहां हुआ|
सांसद कौशलेंद्र कुमार ने कहा कि राज विकास के विभिन्न मापदंडों जैसे प्रति व्यक्ति आय , शिक्षा , स्वास्थ्य , उर्जा की एवं मानव विकास के सूचकांकों पर राष्ट्रीय और सब से काफी नीचे है, बिहार विभाजन के उपरांत प्रमुख उद्योगों के राज्य में नहीं रहने के कारण सरकारी एवं निजी निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा, केंद्र सरकार ने भी क्षेत्रीय विषमता को दूर करने के लिए बिहार को कोई विशेष मदद नहीं की है, इन्हीं कारणों से राज के विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है, और आज स्थिति यह है कि बिहार में प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से 58% कम है|
श्री कुमार ने केंद्र सरकार से मांग करते हुए कहा कि बिहार पूर्ण गठन अधिनियम 2000 के प्रावधानों 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों और रघुराम राजन कमेटी की रिपोर्ट को ध्यान में रखकर बिहार के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए एकमात्र उपाय बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने से ही होगा दूसरा बिहार एक थलरुद्ध राज है, और ऐसे थलरुद्ध एवं अत्यधिक पिछड़ा राज्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी विशेष एवं विभेदित व्यवहार के हकदार है, इस संदर्भ में 15 बे वित्त आयोग को बिहार जैसे पिछड़े राज्य को राष्ट्रीय स्तर पर लाने के लिए संसाधनों की कमी को चिन्हित कर विशेष सहायता देने की आवश्यकता है|