November 22, 2024

#bihar: पिछले कुछ महीनो से चर्चा में चल रहे नाटक “राइडर्स टू द सी” प्रदर्शन हुआ…. जानिए

परिस्थिति के अनुकूल ढलना ही पड़ता है जीवन को : राइडर्स टू द सी…

राइडर्स टू द सी देख भावुक हुए दर्शक …

बाटले का इंतज़ार करते करते अम्मा को आंखे पत्थरा गई..

उम्मीद का जहाज़ चलता ही जाता है : राइडर्स टू द सी…

 

 

 

 

 

ख़बरें टी वी : पिछले 13 वर्षो से ख़बर में सर्वश्रेष्ठ..ख़बरें टी वी ” आप सब की आवाज ” …
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आप का दिन मंगलमय हो….

 

 

 

 

ख़बरें टी वी : 9334598481 : पटना,पिछले कुछ महीनो से चर्चा में चल रहे नाटक “राइडर्स टू द सी” प्रदर्शन हुआ। इस नाटक की तैयारी लगभग 2 महीने से चल रही थी जिसका परिणाम प्रस्तुति में साफ़ साफ़ देखने को मिल रहा था । अभिनय, संगीत परिकल्पना, निर्देशन दर्शकों को इस क़दर बांधे रखा रहा की लोग चाह कर भी सीट छोड़कर जाना नहीं चाहते थे । नाटक “राइडर्स टू द सी” का मंचन , कालिदास रंगालय , गांधी मैदान, पटना में हुआ,जिसकी प्रस्तुति नाट्य संस्था “विश्वा” की है एवं सौजन्य संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार का है।समंदर के सवार एक दुखांत कथा है। यह एक ऐसे परिवार की कहानी है जो एक समुद्री टापू पर रहता हैं, जिसमे एक माँ अपने दो बेटियों और एक बेटे के साथ रहती है।

 

 

उस स्त्री ने अपने पति और अपने 4 बेटों को समंदर में खो दिया है।अब घर मे कमाने वाला सिर्फ एक ही बेटा बचा है और वो भी घोड़े बेचने टापू के पार जा रहा है समुद्री नाव से। उस मां को ये डर है की रात होने तक उसका कोई भी पुत्र जीवित नही रहेगा इसलिये वो अपने बेटे को समंदर में नही जाने को कहती है पर वो अंतिम बेटा रुकता नही है,समुद्र में चला जाता है। अपने अकेले बचे बेटे के भी समंदर में जाने से मां विक्षिप्तता की स्थिति में भ्रम और सच्चाई के बीच संघर्ष करती है।उसे अपने सारे खोए हुए बेटे नज़र आने लगते हैं।अंत में उस मां का सामना सच से होता है जब उसका अंतिम बचा बेटा भी समंदर की उफान मारती लहरों में डूब जाता और उसकी लाश घर मे आती है। तब वो मां कहती है कि एक दिन सब चले ही जाते हैं बस हमें सब्र करना चाहिए और उम्मीद का दामन थाम कर जीवन को जीते रहना चाहिए…

 

 

ये नाटक आज के कोरोना काल मे समसामयिक से लगता है क्योंकि कोरोना में भी कई लोगों ने अपने पूरे परिवार को खो दिया है फिर भी हमलोग इस सच्चाई को स्वीकार कर परिस्थितियों से संघर्ष कर रहे हैं और जीवन जी ही रहे हैं। कलकारों में अम्मा : रेनू सिन्हा,बाटले : संदीप कुमार,कैथलीन : तनु आश्मी ,नोरा : सुश्री बिस्वास, दीपक कुमार ,रजनीश कुमार , पंकज कुमार, शिवम कुमारप्रकाश परिकल्पना : रौशन कुमार ,पार्श्व ध्वनि संयोजन राहुल आर्यन,रूप सज्जा तनु आश्मी,वस्त्र विन्यास पंकज तिवारी, पूर्वाभ्यास प्रभारी शशांक शेखर एवं संजीव कुमार,प्रस्तुति संयोजक :रजनीश कुमार एवं रणधीर कुमार समीर,मंच निर्माण सुनील जी,सहयोग अभिषेक मेहता एवं मनीष,प्रस्तुति विश्वा, पटना,लेखक जॉन मिलिंटन ज़िंग,अनुवादक रज़िया ज़ाहिर, परिकल्पक रजनीश मन्नी,निर्देशक राजेश राजा।