नालंदा विश्वविद्यालय में “राजा ऋषभदेव की परंपरा: संस्कृति एवं सभ्यता के निर्माता” विषय पर एक दिवसीय सेमिनार का आयोजन…

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#ख़बरें Tv: राजगीर, नालंदा (17 नवम्बर, 2025): नालंदा विश्वविद्यालय ने आज अपने राजगीर स्थित परिसर में “राजा ऋषभदेव की परंपरा: संस्कृति एवं सभ्यता के निर्माता” विषय पर बौद्धिक रूप से समृद्ध एक-दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया। कार्यक्रम की शुरुआत पारंपरिक दीप-प्रज्वलन के साथ किया गया। उद्घाटन सत्र में कुलपति प्रो. सचिन चतुर्वेदी ने राजा ऋषभदेव को विश्व के प्रथम दार्शनिक के रूप में रेखांकित करते हुए उनके नैतिक, सामाजिक और ज्ञान-परंपराओं की दिशा में दिए गए अग्रणी योगदान पर अपने वक्तव्य को साझा किया।
सेमिनार के उद्घाटन विशिष्ट सत्र में नालंदा विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ हिस्टोरिकल स्टडीज़ के डीन प्रो. अभय कुमार सिंह, लब्धि विक्रम जन सेवा ट्रस्ट के जैनेश शाह और मुख्य वक्ता के रूप में एल एन मिश्र मिथिला विश्वविद्यालय के डॉ. बी. के. तिवारी शामिल हुए। इन सभी विद्वानों ने अपने अनुभव और विचार साझा किए, जिससे उपस्थित छात्रों, शोधकर्ताओं और शिक्षकों को विषय के बारे में गहरी समझ और कई नए पहलुओं को जानने-समझने का अवसर मिला।
पहला शैक्षिक सत्र राजा ऋषभदेव की ऐतिहासिक और सभ्यतागत महत्ता पर केंद्रित रहा, जिसमें डॉ. लता बोथारा, डॉ. प्रांशु समदर्शी, प्रो. अभय कुमार सिंह और डॉ. तोसाबंता पधान ने उनके बहुआयामी योगदान पर रोशनी डाली। चर्चा का संचालन डॉ. सेजल शाह ने किया, जिन्होंने संवाद को सहजता और गहराई के साथ आगे बढ़ाया।
इसके उपरांत आयोजित सत्र में प्रो. वीनस जैन, डॉ. सेजल शाह और डॉ. आज़ाद हिंद गुलशन नंदा ने भारतीय शास्त्रों में समाज संरचना और शासन के प्रारंभिक स्वरूपों का विश्लेषण प्रस्तुत करते हुए संस्थाओं, परंपराओं तथा सांस्कृतिक स्मृति के विकास में ऋषभदेव की महत्त्वपूर्ण भूमिका पर अपने विचार व्यक्त किए। सत्र की अध्यक्षता डॉ. कश्शफ ग़नी ने की।
तृतीय एवं अंतिम सत्र में वरुण जैन, अर्पित शाह और श्रेयांश जैन ने नैतिक मूल्यों, तीर्थ-परंपराओं और संस्थागत नैतिकताओं की उत्पत्ति पर अपने दृष्टिकोण साझा किए। इस सत्र का संचालन डॉ. पूजा डबराल ने किया, जिन्होंने अपनी संचालन शैली से संवाद को प्रभावशाली व उद्देश्यपूर्ण बनाए रखा।
सम्मेलन का औपचारिक समापन विश्विद्यालय के एसबीएसपीसीआर के डीन प्रो. गोदाबरीश मिश्रा की अध्यक्षता में वैलेडिक्टरी सत्र के साथ हुआ। इस अवसर पर वीरायतन, राजगीर के उपाध्याय यश जी महाराज ने प्रेरक समापन संबोधन दिया, जिसमें दिनभर की चर्चाओं का सार सुंदर रूप में प्रस्तुत किया गया। तत्पश्चात डॉ. प्रांशु समदर्शी ने सभी वक्ताओं, प्रतिभागियों और आयोजकों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद ज्ञापन प्रेषित किया।
स्थानीय विद्यालय के शिक्षकों और विद्यार्थियों ने भी सहभागिता पहल के तहत इस सेमिनार में सक्रिय रूप से भाग लिया। नालंदा विश्वविद्यालय जैन परंपरा, दर्शन और इतिहास पर अनुसंधान को आगे बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयत्नशील है। ऐसे सेमिनारों के माध्यम से विश्वविद्यालय का उद्देश्य सघन अकादमिक शोध को प्रोत्साहित करना, अंतरविषयी संवाद को सशक्त बनाना, और जैन परंपरा की समृद्ध बौद्धिक एवं सांस्कृतिक विरासत के साथ गहरा जुड़ाव स्थापित करना है।
