#nalanda: केवीके ने 22 किसानों को दिया मूंगफली की वैज्ञानिक खेती का प्रशिक्षण.. जानिए
किसानों को मिला मूंगफली खेती का प्रशिक्षण..
केवीके ने 22 किसानों को दिया मूंगफली की वैज्ञानिक खेती का प्रशिक्षण…
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ख़बरें टी वी : 9334598481 : हरनौत : स्थानीय केवीके के ट्रेनिंग हॉल में जिले के सिलाव व गिरियक प्रखंड के 22 किसानों को मूंगफली की वैज्ञानिक खेती का एक दिवसीय प्रशिक्षण दिया गया। इसकी अध्यक्षता वरीय वैज्ञानिक-सह-प्रधान डा. सीमा कुमारी ने की। वहीं मृदा वैज्ञानिक डॉ यूएन उमेश ने बताया कि हल्की बलुई दोमट मिट्टी, अच्छी जल निकास सुविधा एवं कार्बनिक पदार्थों से युक्त 6.5 से 7.0 पी.एच. वाली मिट्टियाँ मूंगफली की खेती के लिए सर्वोत्तम हैं। मूंगफली की कादरी- 6 किस्म गुच्छेदार किस्म है। 3-4 जुताई, जो 10-15 से.मी. गहराई पर हल द्वारा की गयी हो। जहां तक संभव हो सके खर पतवार के नियंत्रण हेतु गर्मी के मौसम में जुताई करनी चाहिए। अंतिम जुताई के बाद पाटा चला देना चाहिए।
उन्होंने ने बुआई से पूर्व मिट्टी की जाँच कराने के लिए मिट्टी का नमूना लेने की विधि पर प्रकाश डाला
उद्यान वैज्ञानिक विभा रानी ने कहा कि मूंगफली के बीज को लाइन से बुआई करने से खर-पतवार निकालने, उर्वरक एवं खाद देने तथा मिट्टी चढ़ाने में सुविधा होती है। वहीं प्लांट पैथोलॉजी के वैज्ञानिक आरती कुमारी ने कहा कि मुंगफली में टिक्का रोग पहचानने का लक्षण पत्तियों पर हल्के रंग के गोल धब्बे बन जाते हैं, जिनके चारों ओर निचली सतह पर पीले घेरे होते हैं। टिक्का रोग के अधिक प्रकोप होने पर तने तथा पुष्प शाखाओं पर धब्बे बन जाते हैं। मूंगफली की फसल को टिक्का रोग से बचाने के लिए कॉपर आक्सी क्लोराइड की 3 ग्राम मात्रा को एक लीटर पानी के हिसाब से घोलकर 2-3 छिड़काव 10 दिन के अन्तराल पर करना चाहिए।कहा मूंगफली की फसल की वृद्धि एवं विकास के लिए 30-35 डिग्री से.ग्रे. तापमान की आवश्यकता होती है। मूंगफली के बीज को 5 ग्राम ट्राईकोडर्मा प्रति किग्रा. बीज की दर से उपचारित करके बोएं। मूंगफली की प्रजाति कादरी-6 को कतार से कतार में लगाने की दूरी 30-45 सेमी. एवं पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेमी. होती है।
मूंगफली की खेती में निराई-गुड़ाई का बहुत अधिक महत्व है। हर 15 दिनों के अंतराल पर 2 से 3 बार निराई-गुड़ाई होना चाहिए। गुच्छेदार जातियों में मिट्टी चढ़ाना लाभदायक है। जब पौधों में फलियां बनने लग जाए, तो निराई-गुड़ाई करना चाहिए। यह किस्म महज 90 दिन में पक कर तैयार होती है तथा उपज 18-24 क्विटल प्रति हेक्टेयर होता है। उन्होंने मुंगफली के प्रभेद के-1812
को भी बताया साथ ही किसानों को मूंगफली का बीज एवं मूंगफली की वैज्ञानिक खेती पुस्तिका भी उपलब्ध कराया गया।
मौकै पर वैज्ञानिक डॉ ज्योति सिन्हा, उद्यान विभाग के वैज्ञानिक ,पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान के वैज्ञानिक डॉ विद्या शंकर सिंह समेत अन्य मौजूद थे।
रिपोर्ट: हरिओम कुमार