नालंदा विश्वविद्यालय में 28 नवंबर को ‘धर्म एवं वैश्विक नैतिकता’ पर अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेंस..

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#ख़बरें Tv: राजगीर, नालंदा (27 नवंबर 2025): नालंदा विश्वविद्यालय शुक्रवार, 28 नवंबर को “धर्म और वैश्विक नैतिकता: भारतीय शास्त्र-परंपरा के आलोक में” विषय पर एक महत्वपूर्ण एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस का आयोजन कर रहा है, जिसकी सारी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। इस सम्मेलन में देश-विदेश के प्रतिष्ठित विद्वान, आध्यात्मिक साधक और नीति-चिंतक धर्म के बहुआयामी स्वरूप और भारतीय दार्शनिक परंपराओं में उसकी भूमिका पर गहन चर्चा करेंगे। साथ ही, साहित्य, पर्यावरण, स्थिरता, राजनीति, वैश्विक नैतिकता और समकालीन चुनौतियों के संदर्भ में धर्म की प्रासंगिकता पर भी विचार-विमर्श होगा।
विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित इस एक दिवसीय कॉन्फ्रेंस के उद्घाटन सत्र में विदेश मंत्रालय, भारत सरकार की संयुक्त सचिव श्रीमती अंजु रंजन अपना उद्घाटन संबोधन देंगी। मुख्य वक्ताओं के तौर पर भारतीय ज्ञान प्रणाली प्रभाग, शिक्षा मंत्रालय के राष्ट्रीय समन्वयक प्रो. गंटी एस. मूर्ति, तथा थाईलैंड से पद्मश्री प्रो. चिरापत प्रपांद्विद्या अपने विचार प्रस्तुत करेंगे। सम्मेलन के चार प्लेनरी सत्र होंगे, जिनमें धर्म और संस्कृति, धर्म और दर्शन, धर्म और अर्थ, तथा धर्म और पर्यावरण जैसे विषयों पर विशेषज्ञ अपने शोध और दृष्टिकोण साझा करेंगे। साथ ही, इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सचिन चतुर्वेदी अध्यक्षीय भाषण देंगे।
इस सम्मेलन में भारत, रूस, बेलारूस, मलेशिया, नेपाल, कज़ाकिस्तान, थाईलैंड, चीन और हंगरी समेत कई देशों के प्रतिष्ठित विद्वान, शोधकर्ता, आध्यात्मिक साधक और नीति-चिंतक हिस्सा लेंगे, जिससे यह आयोजन बहु-देशीय शैक्षणिक संवाद के लिए एक महत्वपूर्ण मंच साबित होगा। कार्यक्रम के दौरान “लोकसंग्रह और समकालीन विश्व” विषय पर एक खास जन-सत्र भी आयोजित होगा, जिसमें वैश्विक उत्तरदायित्व, सामूहिक कल्याण और सहभागी नागरिकता जैसे विषयों पर विस्तृत चर्चा होगी।
कॉन्फ्रेंस के समापन पर एक सांस्कृतिक संध्या का आयोजन भी होगा, जिसमें विश्वविद्यालय के स्पिक मैके चैप्टर के सहयोग से पंडित गौतम काले शास्त्रीय गायन प्रस्तुत करेंगे। इस कार्यक्रम के अंतर्गत, ‘वंदे मातरम्’ की रचना के 150 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में, नालंदा विश्वविद्यालय के छात्र इसका सामूहिक गायन भी प्रस्तुत करेंगे, जो भारतीय सांस्कृतिक विरासत, स्वतंत्रता संग्राम की याद और आज के भारत की गहरी सांस्कृतिक समझ को जोड़ने का काम करेगी।
नालंदा विश्वविद्यालय का यह प्रयास प्राचीन नालंदा की ज्ञान-परंपरा और आधुनिक वैश्विक विमर्श के बीच एक सक्रिय सेतु बनने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। विश्वविद्यालय को विश्वास है कि ये अंतर्राष्टीर्य कांफ्रेंस धर्म, वैश्विक नैतिकता और भारतीय शास्त्र-परंपरा पर हो रहे वैश्विक संवाद को नई दिशा और गहराई देगा, साथ ही युवाओं, शोधकर्ताओं और नीति-निर्माताओं के लिए प्रेरक और सार्थक शैक्षणिक अनुभव भी साबित होगा।
