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#bihar: नालंदा विश्वविद्यालय में ‘धर्म और वैश्विक नैतिकता’ पर अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेंस का सफल समापन…

Bykhabretv-raj

Nov 28, 2025

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

नालंदा विश्वविद्यालय में ‘धर्म और वैश्विक नैतिकता’ पर अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेंस का सफल समापन…

 

 

 

 

 

 

 

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#ख़बरें Tv: राजगीर, नालंदा (28 नवंबर 2025): नालंदा विश्वविद्यालय में आज “धर्म और वैश्विक नैतिकता: भारतीय शास्त्र-परंपरा के आलोक में” विषय पर अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेंस का सफल आयोजन किया गया, जिसमें भारत और विदेशों से प्रतिष्ठित विद्वानों, नीति-निर्माताओं, आध्यात्मिक साधकों और शोधकर्ताओं ने भाग लिया। एक दिवसीय इस कांफ्रेंस में धर्म, सभ्यतागत ज्ञान, वैश्विक नैतिकता, स्थिरता एवं समकालीन नैतिक चुनौतियों पर गहन विचार-विमर्श हुआ। भारतीय शास्त्र-परंपराएँ, जो कभी अध्ययन के परिधि में मानी जाती थीं, अब शैक्षणिक विमर्श और व्यावहारिक उपयोग के केंद्र में अपनी महत्ता स्थापित कर रही हैं। नालंदा विश्वविद्यालय ऐसे कांफ्रेंस के माध्यम से प्राचीन भारतीय ज्ञान को समकालीन संदर्भों में लागू करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठा रहा है। प्रकृति और सस्टेनेबिलिटी से संबंधित ये प्राचीन बोध आज भारत और विश्व के सामने उपस्थित अनेक चुनौतियों का समाधान प्रदान कर सकती हैं।

उद्घाटन सत्र की शुरुआत नालंदा विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा भागवद्गीता के ध्यान-श्लोक के सामूहिक पाठ से हुई। इसके बाद विश्वविद्यालय के एसबीएसपीसीआर स्कूल के डीन एवं कांफ्रेंस संयोजक प्रो. गोदावरिश मिश्रा ने स्वागत भाषण दिया।

उद्घाटन संबोधन में विदेश मंत्रालय की संयुक्त सचिव सुश्री अंजु रंजन ने वैश्विक परस्परता और अंतर-सांस्कृतिक संवाद के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि “सभ्यतागत संवाद और साझा नैतिक दायित्व ही एक परस्पर-निर्भर विश्व में सार्थक सहयोग को संभव बना सकते हैं।”

मुख्य वक्ता के रूप में शिक्षा मंत्रालय के भारतीय ज्ञान प्रणाली प्रभाग के राष्ट्रीय समन्वयक प्रो. गंटी एस. मूर्ति ने भारतीय शास्त्र-परंपरा और आधुनिक ज्ञान-प्रणालियों के सशक्त समन्वय को प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि “भारतीय बौद्धिक परंपराएँ एक समन्वित और सुसंगत दृष्टिकोण प्रस्तुत करती हैं, जो आज के वैज्ञानिक अन्वेषण और नैतिक नेतृत्व दोनों को समृद्ध कर सकती हैं।”

थाईलैंड के सुप्रसिद्ध संस्कृत विद्वान पद्मश्री प्रो. चिरापत प्रपांद्विद्या ने संस्कृत और पाली ग्रंथों में सुरक्षित एशियाई सभ्यताओं की साझा विरासत पर अपने सम्बोधन में कहा कि “शास्त्रीय परंपराएँ एशिया की सांस्कृतिक एकता को गहराई से उजागर करती हैं और धर्म को एक सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांत के रूप में स्थापित करती हैं।”

नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सचिन चतुर्वेदी ने अध्यक्षीय संबोधन में वैश्विक नैतिकता और मानवीय कल्याण पर एक दूरदर्शी दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि, “हमारा दायित्व है कि हम करुणा, पारस्परिकता और कालातीत ज्ञान पर आधारित वैश्विक चिंतकों के समुदाय का निर्माण करें—ताकि शांति, अहिंसा और संतोष हमारे सामूहिक आचरण में पुनः प्रतिष्ठित हो सकें।” उन्होंने यह भी कहा कि बढ़ती वैश्विक अस्थिरता और असंतोष के बीच करुणा (करुणा), पारस्परिकता और नैतिक संयम जैसे मूल्यों की पुनर्स्थापना अत्यंत आवश्यक है।

सम्मेलन में भारत, रूस, बेलारूस, मलेशिया, नेपाल, थाईलैंड, कज़ाकिस्तान, चीन, इथियोपिया, हंगरी और फिजी सहित कई देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इसके साथ ही भारत सरकार के विदेश मंत्रालय, शिक्षा मंत्रालय के भारतीय ज्ञान प्रणाली प्रभाग, अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों, इस्कॉन, गीता आश्रम, संस्कृत विश्वविद्यालयों और अन्य सांस्कृतिक संस्थानों के प्रतिनिधि भी उपस्थित रहे।

चार प्लेनरी सत्रों में धर्म और संस्कृति, धर्म और दर्शन, धर्म और अर्थ, तथा धर्म और पर्यावरण के विभिन्न आयामों पर विस्तृत चर्चा हुई। वहीं ‘लोकसंग्रह और समकालीन विश्व’ पर आयोजित सार्वजनिक सत्र में नैतिक नेतृत्व और वैश्विक उत्तरदायित्व पर विचार-विमर्श हुआ।

नालंदा विश्वविद्यालय में आयोजित यह अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन नैतिकता, स्थिरता और सभ्यतागत ज्ञान पर वैश्विक संवाद को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता को सुदृढ़ करते हुए सम्पन्न हुआ। विश्वभर से आए विद्वानों और विशेषज्ञों ने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि भारतीय शास्त्र-परंपरा आधुनिक चुनौतियों का समाधान प्रस्तुत करने में अत्यंत प्रासंगिक है और एक संतुलित, करुणामय एवं उत्तरदायी वैश्विक व्यवस्था के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

समापन सत्र में वंदे मातरम्” की 150वीं वर्षगांठ के अवसर पर नालंदा विश्वविद्यालय के छात्रों ने राष्ट्रगीत भी प्रस्तुत किया। ऐसे कांफ्रेंस सामूहिक और स्थिर भविष्य के निर्माण में योगदान देने के साथ साथ, भारतीय ज्ञान परमपरा को वैश्विक शैक्षणिक और शोध समुदाय में आगे बढ़ाने के लिए एक सुदृढ़ अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क भी तैयार करते हैं।