दोनों हाथ नहीं होने के बावजूद छोटू आज किसी हुनर का मोहताज नहीं, चाहत है डीएम बनने की…
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#ख़बरें टी वी : कहते है हुनर हाथों का मोहताज नहीं होता और इस बात का उदाहरण हैं 17 वर्षीय छोटू कुमार की।
छोटू जन्म से विकलांग है दोनों हाथ नहीं होने के बावजूद
आज वह किसी हुनर का मोहताज नहीं, नाम से ही आसपास के लोग पहचान जाते हैं। उसकी विकलांगता होने के वावजूद उसकी प्रतिभा आज ईश्वरीय वरदान से कम नहीं हैं, जो खुदबखुद आ ही जाता है, छोटू की प्रतिभा में ना उम्र ना जाति बाधक बन रहीं हैं। वो कहते हैं ना “जिनके हौसले ऊंचे होते हैं, उनकी मंज़िलें खुद रास्ता देती हैं।”
गिरियक प्रखंड के राम नगर मरकट्टा गांव निवासी लालो देवी ने कभी नहीं सोचा था कि वे एक दिव्यांग लड़के को जन्म देंगी, लेकिन भगवान की मर्जी के आगे किसकी चली है. उन्होंने एक विकलांग बच्चें को जन्म दिया. जो जन्म से ही दोनों हाथों से दिव्यांग था । सबसे छोटे बेटे होने का कारण उसका नाम घर में छोटू रख दिया गया ।
दिव्यांग बेटे के जन्म के वावजूद आज छोटू अपने परिवार में खुशियां देने का काम कर रहा है । चार भाई बहन में आज छोटू ही परिवार का नाम रोशन कर रहा है बाकी बच्चे खेती कर परिवार की आजीविका चला रहे हैं
छोटू की दृढ़ इच्छा शक्ति के कारण आज विकलांगता उसके आड़े नहीं आ रही हैं। बचपन से ही छोटू क्रिकेट का शौकीन था । अक्सर वह क्रिकेट के मैदान पर जाकर बैठा रहता था बच्चों को खेलते देख उसके मन में भी खेलने की जिज्ञासा होती थी । लेकिन दोनों हाथ नहीं होने के कारण उसे कोई खेलने नहीं देता था । पर छोटू रुकने वाला कहा था , घर के किनारे ही छोटू लकड़ी के बैट लेकर क्रिकेट की प्रैक्टिस करता रहता था । बड़े भाई ने इसमें उसकी मदद की बड़े भाई अक्सर बोलिंग करता और छोटू बैटिंग साथ ही वह बड़े बच्चों को क्रिकेट खेलते देख उसकी हु बहू नकल उतारने की कोशिश वह पूरे दिन किया करता था । क्रिकेट ग्राउंड दूर होने के कारण उसे दिव्यांग समझ कोई खेल के मैदान तक नहीं ले जाता था वह पैदल ही 2 किलोमीटर तक सफर पूरा करता चला। छोटू ने बताया कि एक बार किसी गांव के टीम का मैच चल रहा था एक खिलाड़ी की कमी थी, उसे टीम में शामिल कर लिया गया बस उस दिन से छोटू कुमार लगातार बड़े बड़े लड़कों के साथ खेलने लगा उसका खेल देख सभी लोग उसे सम्मान की नजरों से देखते थे
छोटू ने बताया कि जब वह उस मैच में टीम में शामिल किया गया वहां पर उसने गले के सहारे बैट पकड़कर अपनी प्रतिभा दिखाई और बाएं हाथ से बल्लेबाजी करने
लगा धीरे-धीरे लोग उसे जानने लगे ।
आने जाने में उसे दिक्कत होती थी तो उसने साइकिल चलाना भी सीख गया फिर धीरे-धीरे दूसरों से मांग कर मोटरसाइकिल भी सीख गया छोटू के हौसले बुलंद थे परिवार आर्थिक तंगी से गुजर रहा था परिवार की ओर से भी उतना सहयोग नहीं मिल पाता था लेकिन हौसला जरूर मिल जाता था । फिर छोटू ने पढ़ाई करने के भी ठानी और आज वह 12वीं बोर्ड का एग्जाम की तैयारीया में जुटा हुआ है ।
पिता पुदीन मांझी खेत में मजदूरी करके कमाते थे छोटू के दो और भाई हैं वे भी खेत में काम करके परिवार का किसी प्रकार से भरण पोषण करते हैं। हाथ नहीं होने के कारण उसे कोई काम का नहीं समझ कर उससे कोई काम भी नहीं लेते थे । मां का सहयोग मिला और छोटू गांव के ही सरकारी विद्यालय पढ़ने चला गया । छोटू के मेहनत और काबिलियत देख उसके मदद वहां के शिक्षक भी करने लगे धीरे-धीरे छोटू दसवीं पास कर गया रिजल्ट अच्छा आया तो उसने 12वीं में नामांकन कर लिया कुछ ही महीनों में बोर्ड का एग्जाम का।
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लिखावट ऐसी की हर कोई रहा जाता हैं दंग , बनना चाहता है डीएम
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बचपन में छोटू कुमार पैरों के सहारे जमीन पर शब्दों को उकेरने लगा धीरे-धीरे उसकी जमीन पर लिखने की मेहनत रंग लाई तो उसके पैरों में जान आ गए । फिर उसने परिवार के सहयोग से प्रकार से कॉपी और पेन लिया । आज छोटू पावापुरी मोड पर 12 की कोचिंग करता है बचपन में जमीन पर उकेरी गई लाइन आज कागजों में सुंदर अक्षर बनकर तैयार हो गए हैं जिन्हें देख हर कोई दंग रह जाता है दोनों पैरों से छोटू पहले कागज के पन्ने को पलटता हैं फिर पैरों से ही पेन उठाकर धीरे-धीरे लिखते लगता है इसकी लिखावट देख बड़े-बड़े अवाक होकर देखने लग जाते हैं । राइटिंग इतनी सुंदर है जिसका वर्णन अखबार के माध्यम से नहीं किया जा सकता है । उसकी यही कल देख उसके कोचिंग में उसके शिक्षकों ने उसे दसवीं के बाद निःशुल्क पढ़ना स्टार्ट कर दिया।
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पढ़ाई का खर्च ट्रैक्टर चला कर पूरा करता है
छोटू कुमार के परिवार के आर्थिक आमदनी उतनी नहीं थी जो 12वीं की पढ़ाई में उसकी मदद करती। अपने एक दोस्त को ट्रैक्टर चलाता देखा उसने ट्रैक्टर चलाना भी सीख लिया फिर धीरे-धीरे ट्रैक्टर के जरिए मिट्टी उठाओ जैसे काम कर कुछ थोड़े बहुत पैसे भी कमाने लगा जिससे उसकी पढ़ाई में मदद होने लगी
छोटू ने बताया….
छोटू कुमार ने बताया कि जब उसे होश आया तो अपने दिव्यांग होने पर अफसोस भी आता था । लेकिन वह मेहनत करने से पीछे नहीं आता वहीं लेकिन मां के प्रोत्साहन के कारण उसने क्रिकेट खेल सीख फिर ट्रैक्टर साइकिल चलाना । शिक्षकों की मेहनत के कारण आज वह 12वीं की क्लास में पहुंचा हैं जिसका एग्जाम अगले महीने है उसने कहा कि उसका सपना है यूपीएससी एक्जाम पास कर डीएम बनने का…
रिपोर्ट: बसंत सिंह