November 24, 2024

ख़बरें टी वी : बिहार शरीफ का गोला गणेश ,आजादी के पहले से बिठाई जाती है गणेश प्रतिमा…. जानिए

बिहार शरीफ का गोला गणेश ,आजादी के पहले से बिठाई जाती है गणेश प्रतिमा….

 

 

 

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आप का दिन मंगलमय हो….

 

 

 

ख़बरें टी वी : 9334598481 : यूं तो गणेश पूजा महाराष्ट्र में बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। लेकिन बिहार के नालंदा में भी गणेश चतुर्थी के दिन महाराष्ट्र की तर्ज पर धूम देखने को मिलती है। यहां भी लाल बादशाह की पूजा की जाती है, जिन्हें यहां गोला गणेश के नाम से जाना जाता है। लोगों कि मान्यता है कि भगवान श्री गणेश के जन्मोत्सव के रूप में गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जाता है। गणेश जी सर्वप्रथम पूजनीय देवता हैं।

 

 

ये धन, विज्ञान, ज्ञान, बुद्धि और समृद्धि के देवता के रूप में जाने जाते हैं। गणेश जी को 108 अलग-अलग नामों से जाना जाता है. जैसे गजानन, विनायक, विघ्नहर्ता। गणेश चतुर्थी को विनायक चतुर्थी भी कहा जाता है। भाद्र महीने में गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जाता है। नालंदा मुख्यालय बिहार शरीफ स्थित सोहसराय थाना क्षेत्र के गोलापुर में भगवान गणेश की भव्य आकर्षक प्रतिमा तैयार की जाती है। उस स्थल का नाम ही गोला गणेश है। आज से करीब 100 साल पूर्व महाराष्ट्र और गुजरात के व्यापारी जब व्यापार के लिए पहुंचते थे,

 

 

तो उन्हें व्यवसाय के सिलसिले में रुकना पड़ता था। तो एक समय गणेश चतुर्थी पर व्यापारी घर नहीं जा सके और यहां उनलोगों ने मिलकर गणेश की प्रतिमा बनाई और फिर उनकी पूजा शुरू की। आज यह के छठे पीढ़ी के लोग के सहयोग से पंडाल निर्माण कर मूर्ति पूजन किया जा रहा है साथ ही यह घी के लड्डू चढ़ाए जाते है और वितरण भी किया जाता…उस रोज शुरू हुई पूजा आज परंपरा का रूप ले चुकी है।

 

 

नालंदा में 12 दिन
पूजा समिति के सदस्यों का कहना हैं कि बिहार के अलावा बंगाल और यूपी के लोग उस वक्त गणेश पूजा की एक झलक पाने आते थे। उसके बाद धीरे-धीरे गणेश चतुर्थी के मौके पर कई जगह उनकी प्रतिमा बैठाई जाने लगी और उनकी पूजा होने लगी है। लेकिन एक वक्त था जब बिहार में गणेश चतुर्थी के मौके पर उनकी प्रतिमा सिर्फ़ यहां होती थी। खास बात यह है कि इन्हें लाल बादशाह के नाम से पुकारा जाता है, क्योंकि उन्हें पूरे विधि विधान के साथ लाल रंग में सजाया जाता है। वैसे तो गणेश चतुर्थी 10 दिनों का मनाया जाता है,

 

 

लेकिन नालंदा में 12 दिनों का होता है। भादो चौठ को मूर्ति की स्थापना की जाती है। उसके बाद अश्विन दूज को मूर्ति विसर्जन के साथ प्रदर्शनी निकलती है। इस तरह कुल मिलाकर 12 दिन पूजा अर्चना होती है। बड़े से भव्य तरीके से झांकी निकाल कर ढोल नगाड़ों के साथ नाचते गाते गणपति को विदाई देते हैं। कई बार प्रशासन की ओर से पुरुस्कार दिया जा चुका है।

 

 

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