ख़बरें टी वी : भारतीय न्याय प्रणाली में होनी चाहिए सुधार , मुकदमे के फैसला की सीमा में निर्धारित होनी चाहिए….जानिए
भारतीय न्याय प्रणाली में होनी चाहिए सुधार , मुकदमे के फैसला की सीमा में निर्धारित होनी चाहिए :- अकेला
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आप का दिन मंगलमय हो….
ख़बरें टी वी : 9334598481 : नालंदा चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष अनिल कुमार अकेला अंतरराष्ट्रीय न्याय दिवस पर विशेष बयान जारी कर कहा कि आज भी आम आदमी को आसानी से न्याय नहीं मिल रहा है न्याय के बारे में एक पुरानी अंग्रेजी कहावत है कि न्याय में देरी करना न्याय को नकारना है और न्याय में जल्दबाजी करना न्याय को दफनाना है।
यदि इस कहावत को हम भारतीय न्याय व्यवस्था के परिपेक्ष में देखें तो पाएंगे कि इसका पहला भाग पूर्णता सत्य प्रतीत होता है सीमित संख्या में हमारे जज और मजिस्ट्रेट मुकदमों के बोझ के तले दबे प्रतीत होते हैं एक मामूली विवाद कई सालों तक चलता रहता है तथा पीड़ितों को दशकों तक न्याय का इंतजार करना पड़ता है। यही वजह है कि लोगों में न्याय के प्रति गहरे असंतोष के भाव हैं वे अपने साथ हुए अन्याय के विरूद्ध इसलिए कोर्ट नहीं जाते हैं क्योंकि उनके यह भरोसा नहीं रहा कि न्याय उसके लिए मददगार होगा
श्री अकेला ने कहा कि आज भी न्यायपालिका परेशान लोगों के लिए संत्बना का माध्यम है निराशा लोगों के लिए आज आशा की किरण है ।गलत काम करने वाले लोगों के लिए भय का कारण है तथा कानून का पालन करने वाले लोगों को राहत देती है यह बुद्धिमान और संवेदनशील लोगों के लिए एक घर के समान है एक ऐसी शरण स्थली है जहां गरीब और अमीर दोनों को आसानी से न्याय मिलता है न्यायधीश की कुर्सी पर बैठने वाले लोगों के लिए एक सम्मान और गर्व का स्थान होता है परंतु आज के समय में गरीब लोगों कि न्यायालय में पहुंच बहुत कम हो गए हैं आज स्थिति यह हो चुकी कि धूर्त लोग न्यायालयों न्यायालयों का दुरुपयोग समाज के सम्मानित लोगों के विरुद्ध हत्यार के रूप में करने लगे हैं वे किसी भी व्यक्ति के खिलाफ सच्चा या झूठा मुकदमा दायर कर देते हैं और मुकदमा जलने वाला सारा जीवन स्वयं को निर्दोष सिद्ध करने में लगा देता है संविधान ने न्याय व्यवस्था की जिम्मेवारीअदालतों पर डाल दी है वह न्याय के एकमात्र एवं सर्वोपरि स्रोत माने जाते हैं एक अनुमान के मुताबिक भारत में उच्च न्यायालय एक मुकदमे का निर्णय सुनाने में लगभग कई वर्ष से अधिक का समय लेते हैं उसने न्यायालय से निम्न स्तरीय अदालतों का हाल तो इनसे भी कहीं बुरा है जिला कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक चलने वाले एक मुकदमा का अंतिम फैसला 10 साल 15 साल में आता है लोगों का मानना है कि भारत की न्याय प्रणाली में अधिक समय खर्च करने का मूल कारण लोगों की अधिकता है इसलिए असल समस्या है कि मामलों का निपटारा ना हो पाना केवल न्यायिक तंत्र में खामियां बताकर उसे कोसते रहना उचित नहीं है देश के सभी नागरिकों, जजों,वकीलों तथा सरकारों को यह दायित्व है कि हम न्याय व्यवस्था को दुरुस्त करें।कोर्ट की तारीख पर तारीख देने की प्रवृत्ति पर रोक लगाएं मुकदमे के फैसले की सीमा निर्धारित होनी चाहिए।